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नज़राना इश्क़ का (भाग : 45)










हम दुनिया में जिस चीज की वजह से जितना अधिक खुश होते हैं, उसी चीज की वजह से उतना ही अधिक दुख भी महसूस होता है, और तब फिर कुछ भी नही सूझता, दिमाग की नसें जम जाती हैं और सीने में उमड़ उमड़ कर तूफान आने लगते हैं। 

आज निमय की यही हालत थी, बड़ी मुश्किल से उसने किसी तरह अपने दिल की बात लिखकर ही सही पर जाहिर कर दी, उसने वो सब कह देने की कोशिश की जो वह फरी के लिए अपने दिल में महसूस करता था। मगर अब इतना देर हो जाने के बाद उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, उसे अब बुरी तरह डर लगने लगा कि फरी क्या सोचेगी! कही वो भी दुनिया की तरह ये ना कहे कि मैंने तो तुम्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त समझा और तुम ऐसी हरकतें करने पर उतर आए? तरह तरह के ख्यालात उसके दिमाग का दही किये जा रहे थे, वह सोच रहा था कि कहीं उसकी बेवकूफी के चक्कर में वह उसका साथ भी ना खो दे। भले वह उससे प्यार ना करती हो पर उसका साथ होना निमय के लिए सुकून के जैसा था, उसके पास होने का एहसास मानो ऐसा था कि वह दुनिया जीत चुका हो।

निमय मन ही मन खुद को कोसता रहा, अफसोस करता रहा, पर उसे थोड़ी राहत भी थी कि उसने कैसे भी करके अपने दिल की बात उसे बता दी, ये मिक्स्ड फीलिंग्स उसकी जान निकालने पर उतारू थी, उसकी हालत धोबी के उसी कुत्ते के जैसे हो चुकी थी जो अब न घर का रहा न ही घाट का, पर जैसे ही उसे यह याद आया कि अभी फरी ने उसे रिजेक्ट नहीं किया है तो उसने लंबी सांस ली।

सुबह के ग्यारह बज चुके थे, निमय सारी सुध-बुध खोकर, बिना खाये पिये, अप्रैल की इस भयंकर गर्मी में भी छत पर एक कोने में चुपचाप खड़ा था। उसके होंठ तो बन्द थे, वह चुपचाप था, लेकिन अपने अंदर चल रहे भयंकर संग्राम को बस वही जानता था। कभी वह खुश हो लेता, कभी दुःखी होने लगता तो कभी उसे खुद समझ न आता कि उसे रोना चाहिए या हँसना!

ये इश्क़ बड़ा अजीब रोग है, मगर इश्क़ का इजहार तो उससे भी ऊपर के लेवल का रोग है, इश्क़ तो बस दिमाग की नसों को सुन्न कर देता है मगर उसका इजहार पूरे बदन को निश्चेत कर देता है.. निष्प्राण एकदम...! शरीर लकवाग्रस्त हो जाता है। सामने वाले का जवाब क्या होगा इस सवाल से तो दिमाग जैसे कोई काम करने की हालत में नहीं रह जाता। कोई भी अंग, ठीक ढंग से काम नहीं करता, बस धड़क रहा होता है तो दिल…! वो भी बड़ी तेजी से…धक धक धक..! सिर्फ धड़कने की आवाज आती है और इन धड़कनो का शोर इतना तेज होता है कि कान दुखने लगता है और वे धड़कने लगातार तेज होती जाती हैं.. और मन मस्तिष्क को चेतना विहीन करती जाती हैं,  चारों तरफ बस शोर ही शोर महसूस होता है मानो किसी ऊंचे पहाड़ से कोई बहुत बड़ी चट्टान चरमराकर भीषण आवाज के साथ टूटती जा रही हो.., वहां के मौन सन्नाटे को चीरते हुए नीचे गहरी खाई में लुढ़कते हुए गिरती जा रही हो...।

निमय की हालत यही थी, वह अपने सीने पर हाथ रखे बरबस ख्यालों में खोया हुआ था। उसे अब यह तक भी याद न रहा कि उसने अपना फ़ोन स्विच ऑफ किया हुआ था। वह अपने ख्यालों में इतनी तन्मयता से लीन था कि उसे जाह्नवी के आने की आहट तक न सुनाई दी।

"ओये? आज कोई तपस्या करने में लगा हुआ है क्या?" जाह्नवी उसके पीछे से आते हुए ठिठोली कर बोली। जाह्नवी की आवाज सुनकर उसकी तंद्रा टूटी, वह उसकी ओर पलटा और अपने चेहरे के भाव छिपाने की कोशिश करने लगा।



"नहीं ऐसे ही…!" निमय ने मुँह छुपाते हुए जवाब दिया।


"क्या ऐसे ही? इतने धूप में खड़ा है, अब तक दवाई भी नहीं खाया है! एक दिन ध्यान न रखो तो जनाब को खुद का ख्याल भी नहीं रहता। कोई फिक्र भी है खुद की?" जाह्नवी मुँह बनाकर गुस्से से डाँटती हुई बोली। निमय को कुछ बोलते न बना, वह चुपचाप सुनता रहा, जाह्नवी का कहना भी सही था उसे अब तक दवाई ले लेनी चाहिए थी, मगर उसे तो यह भी याद न था कि वह कितने घण्टे से वहां छत पर खड़ा था।

"मुझे लगा कि तू अपने कमरे में आराम कर रहा होगा, पता होता यहां धूप ले रहा है तो….! हर जगह ढूंढी मैं और तुम यहाँ पड़े हुए हो!    मैं तो कहती हूँ न अब तो सच में भाभी की बहुत जरूरत है!" जाह्नवी ने ताने कसते हुए कहा।

"यही तो मैं भी सोच रहा...!" कहता हुआ निमय बीच में ही रुक गया, क्योंकि अब उसे एहसास हो चुका था कि उसने क्या बोल दिया था।

"क्या बोला तूने?" जाह्नवी ने उसकी ओर बड़े गौर से देखकर घूरते हुए पूछा। "घर पर इनसे बस तीन मिनट छोटी बहन पड़ी हुई है और इन्हें अपने शादी की पड़ी है वाह… नहीं नहीं वाह…! हैशटैग मतलबी दुनिया..!" जाह्नवी ने मुँह बनाते हुए तल्ख लहजे में कहा। निमय को कुछ कहते नहीं बना, आज वह बार बार निरुत्तर होता जा रहा था, वह अब भी स्वयं को सामान्य दिखाने की असफल कोशिश कर रहा था, मगर जाह्नवी ने उसके हाव भाव को देखने के बाद भी उससे कोई सवाल नहीं किया तब जाकर निमय को थोड़ी सी राहत मिली।

"अरे हाँ सुन..! क्या तो बताने के लिए ढूंढ रही थी मैं…!" जाह्नवी अपने सिर पर उंगली नचाते हुए सोचने की मुद्रा बनाकर बोली। निमय को सहसा ख्याल आया कि कहीं फरी ने इससे कुछ कहा तो नहीं! बस इसी ख्याल से उसके शरीर में तेज़ी से सिहरन दौड़ गई।

"क… क्या?" निमय ने जानने की चेष्टा की।

"हाँ याद आया। फरु ने कॉल किया था और वो बोल रही थी कि तुझसे बहुत गुस्सा थी, उसे उम्मीद नहीं थी कि तुम कुछ ऐसा करोगे! अब देखो तुमने क्या किया है तुम जानो, उसने बस इतना ही कहा कि उसको तुझसे कोई बात ही नहीं करनी है।" जाह्नवी ने कंधे उचकाते हुए निमय के मजे ले लेकर बताया।

"क… क्या?" निमय की आँखे फटी की फटी रह गयी, अगले ही पल आँसुओ ने वहां अपना घर बनाना शुरू कर लिया, मगर जैसे ही उसे वहां जाह्नवी के होने का याद आया उसने अपने आप को संभालने की पुरजोर कोशिश की।

"हाँ…! और ये क्या क्या लगा रखा है तूने, चल नीचे खाना खाकर दवाई खा समझा! तुम दोनों दोस्त पता नहीं क्या नौटंकी लगाए बैठे हो, तुम्हारी तो मैं बाद में खबर लेती हूँ।" धमकाते हुए जाह्नवी नीचे जाने लगी, निमय के पाँव भारी हो गए थे, मन में अनिष्ट ख्यालों ने अपना बसेरा बना लिया, आँखे भर आयी पर उसने जबड़े भीच लिए, उसे पता था कि अगर जाह्नवी ने उसके आँसू देख लिए तो उससे सवाल करेगी और अभी वह कुछ बता सकने की हालत में बिल्कुल नहीं था।

'क्यों फरु क्यों? तुम भी तो मेरे साथ ऐसे ही रहती थी जैसे मुझसे प्यार करती हो, फिर क्यों उम्मीद नहीं थी तुम्हें मुझसे इसकी? मैंने क्या गलत किया है? बस प्यार ही तो किया है? ये प्यार एक पल में सुकून और दूजे पल में ज़िंदगी को ज़हर क्यों बना जाता है? मैंने तो कभी चाहा नहीं था न कि मुझे प्यार हो… फिर क्यों? क्यों हो गया मुझे तुमसे प्यार… बोलो न..!' निमय मन ही मन दहाड़े मार कर रो पड़ा था मगर उसके होंठो से कोई आवाज बाहर न निकली, वह कैसे भी करके खुद को संभालने की नाकाम कोशिशें कर रहा था।

"अब आएगा भी या ऊपर ही व्रत पूरा करना है?" नीचे से जाह्नवी की आवाज आई, जो उसे खाने के लिए बुला रही थी। निमय मन मारकर खाने चला गया, क्योंकि वह किसी भी हालत में जाह्नवी का दिल नहीं दुखा सकता था, भले वो फरी से बेइन्तहा मोहब्बत करता था, मगर उसकी जान जाह्नवी में बसती थी, वह उसके सामने कभी भी अपना उदास चेहरा लेकर नहीं जा सकता था क्योंकि वह बहुत अच्छे से जानता कि जाह्नवी भले उससे कितना भी लड़े झगड़े…! पर सबसे ज्यादा परवाह भी वही करती है। निमय अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान फैलाये चुपचाप से खाने लगा।


"क्या हुआ? खाना अच्छा नहीं है क्या?" जाह्नवी ने उससे पूछा।

"नहीं नहीं.. बहुत अच्छा है!" निमय ने मुस्कुराने की कोशिश की।

"शक्ल देखकर ऐसा लगता तो नहीं, दुबारा इतनी देर तक धूप में दिखा तो सोच लेना! और चुपचाप जाकर आराम कर समझा।" जाह्नवी ने उसे बड़े प्यार से फटकार लगाते हुए कहा। "और फरु वाली बात का टेंशन न ले, जो कोई भी मसला होगा सुलझ जाएगा। और वैसे भी तू ही कहता है जो अपने होते हैं वो लड़ते हैं, झगड़ते हैं, रूठते हैं, नाराज़ होते हैं, पर कभी छोड़कर नहीं जाते!" जाह्नवी ने अपने चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान सजाते हुए कहा।


"हूँ…!" कहते हुए निमय ने जल्दी से खाना खत्म किया। जाह्नवी ने उसे उसकी दवा खिलाई और फिर उसके कमरे तक छोड़ने गयी।

"चुपचाप आराम कर, और हाँ मैं कोई बहाना नहीं सुनने वाली हूँ समझा न!" जाह्नवी ने उसे उसके बिस्तर पर बिठाते हुए कहा।

"हाँ ठीक है ना! अब क्या जान दे दूं..!" निमय का गंदा सा मुँह बन गया, यह देखकर जाह्नवी खिलखिलाकर हँस पड़ी।

"नहीं ना..! उसको लेने के लिए तो मेरी भाभी आएगी ही न…!" कहकर हँसते हुए वह कमरे से बाहर चली गयी।

'काश! कि मैं अपनी बात तुम्हें समझा पाता, पर इस बात को जाने दो..! शायद मेरी हैसियत तुम जितनी नहीं है फरी जी! पर मैं तुम्हारे जख्मों को कुरेदना नहीं चाहता था यार! आई एम सॉरी!! मेरी वजह से तुम्हें तकलीफ हुई होगी, मैं बस तुमसे एक बार माफी मांगना चाहता हूँ…!' निमय की आँखों में आये आँसुओ ने सब्र का बांध तोड़ दिया था, वो पलको के किनारे से बहते हुए उसके गाल के साथ बिस्तर भिगोने लगे, निमय ने अपने चेहरे पर चादर समेट लिया, और ख्यालों की अंधेरी दुनिया में भटकता रहा।


क्रमशः….!!


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12 Comments

Archita vndna

23-Feb-2022 12:57 PM

वेरी नाइस स्टोरी लिखी है आपने!👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌

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Dhnyawad

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Rohan Nanda

23-Feb-2022 12:42 AM

Good story 👌👌👌👌👌👌

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Thank you

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Seema Priyadarshini sahay

21-Feb-2022 05:27 PM

नाइस पार्ट

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Thank you

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